क्या हम इंतज़ार कर रहे हैं, की इस पृथ्वी पर मौजूद सारे संसाधनों को ख़त्म कर दें?
या इस तरह से बर्बाद करें, कि उसका उसको फिर से स्थापित होने में बहुत समय लग जाए?
क्योंकि हमारी औकात तो नहीं है, की पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) से मिलने वाले संसाधनों को बना सकें।
क्योंकि उन संसाधनों को बनाने के लिए फिर से हमें दूसरे प्राकृतिक संसाधनों (Natural Resources) का इस्तेमाल करना पड़ेगा जिसे हम पहले ही ख़राब कर चुके हैं, या बर्बाद कर रहे हैं।
ज़रा सोचिए अगर आप अपने पड़ोस के अस्पताल में ऑक्सीजन सिलेंडर (Oxygen Cylinder) एक दिन के लिए किराए पर लेते हैं, तो कितना खर्च आता है।
मेरे ख्याल से बहुत कम भी आता होगा तो ₹2000 एक दिन का खर्च आही जाएगा।
तब सोच लीजिए अगर आप एक महीना इस्तेमाल करते हैं, तो कितना खर्चा हो जाएगा। यही ऑक्सीजन आपको बिना खर्चा किए मुफ़्त में प्रकृति (oxygen is freely available from nature) द्वारा मिल रही है, या जिस परिस्थितिकी तंत्र में आप रह रहे हैं, वहां से मिल रही है।
शायद हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते की, हमें बिना कुछ खर्च किए प्रकृति के संसाधनों से कितना कुछ मिल रहा है। और हम अगर चाहे भी तो इन संसाधनों को पुनः आसानी से नहीं बना सकते।
ज़रा सोचिए आप प्रकृति में जो पौधों में फूलों को देखते हैं, और मन में ताज़गी महसूस करते हैं।
क्या यही प्लास्टिक के फूलों यह दूसरे आर्टिफिशियल फूलों को देखकर महसूस हो सकता है?
इसी तरह से मधुमक्खियों (Honey Bees) द्वारा जो परागण (Pollination) की प्रक्रिया है, वह
प्राकृतिक तरीके से होती है। अगर आप इसे कृत्रिम तरीक़े (artificial pollination) से करेंगे तो कितना खर्चा आ जाएगा?
प्राकृतिक परागणकारियों (Natural Pollinator like bees) के न होने पर परागण का को पूरा करने की लागत कितनी होगी?
यह अंदाज़ा लगाना ही मुश्किल है?
और हम क्या कर रहे हैं मधुमक्खियों को तो खत्म कर ही रहे हैं, और जिन फूलों पर या जिन पौधों पर यह निर्भर हैं, उन्हें भी ख़त्म कर रहे हैं।
मतलब सीधी-सी बात है कि हम दोनों ही जातियों को जो एक दूसरे पर निर्भर हैं, ख़त्म (Co-extinction of both plant and pollinator) कर रहे हैं।
इससे होगा क्या, हमें अपने भोजन के लिए या दूसरे किसी भी प्रकार के संसाधन जो पेड़ पौधों से ही मिलते हैं वह नहीं मिल पाएंगे। अब यह सब आप अंदाज़ा ही लगाएं और लगाते रहें, कि इकोसिस्टम को डिस्बैलेंस करके, हमें क्या मिलने वाला है।
इस समय पूरी दुनिया में अगर देखा जाए तो लगभग 25000 से 30000 पौधों की ऐसी प्रजातियां (Species) हैं, जिनसे विभिन्न प्रकार की दवाएं (Medicines) बनाई जा रही है।
और यह मान के चलिए की बहुत सी ऐसी पौधों की प्रजातियां खोजी जानी बची हैं, जिनसे हमें बहुत सी औषधियां या दवाइयां (Medicines) मिल सकती हैं।
लेकिन शायद जब तक हम इन पौधों को ढूंढेंगे तब तक यह हमारे ही क्रियाकलापों (these are extinct due to human activities) द्वारा विलुप्त हो चुके होंगे।
मैंने अपने पिछले लेख में यह बताया था कि किस प्रकार से ‘पृथ्वी के फेफड़े’ जोकि अमेज़न के वर्षावन (Amazon Rain Forest) है।
इन वर्षा वनों को सोयाबीन की खेती और जानवरों की चरागाह को बनाने के लिए काटा जा रहा है।
अमेज़न के वर्षावन से पूरी पृथ्वी का लगभग 20% ऑक्सीजन पैदा होती है, अब आप हिसाब लगा सकते हैं, की बर्बादी की किस सीमा तक इंसान पहुंच गए हैं।
इसे अगर रोका ना गया तो हमें तो यह संसाधन मिलने मुश्किल हो जाएंगे और अपने आने वाली पीढ़ियों को हम क्या दे पाएंगे।
अगर केवल इन संसाधनों को मूल्य में आंकें तो शायद बहुत मुश्किल हो।
पारिस्थितिकी/पारितंत्र की सेवाएं(Ecosystem Services in hindi)-
एक अच्छा और स्वस्थ पारितंत्र हमें आर्थिक, पर्यावरणीय और सौंदर्यात्मक वस्तुएं और सेवाओं के बहुत बड़े परिसर का आधार है।
पारितंत्र की प्रक्रिया के फल स्वरुप जो भी उत्पाद हमको मिलते हैं उन्हें पारितंत्र सेवाओं(ecosystem services) के नाम से जाना जाता है।
जैसे कि एक बड़ा और स्वस्थ वन का पारिस्थितिकी तंत्र की भूमिका-
साफ़ हवा और जल को शुद्ध बनाना है,
सूखे और बाढ़ की घटनाओं को कम करना है,
पोषक साइकिल को नियमित करना है,
भूमि को उपजाऊ बनाना है,
जंगली जीवो को आवास प्रदान करना है,
जैव विविधता को बनाए रखना है,
फसलों का परागण करने में सहायता करना है, और कार्बन के भंडारण के लिए जगह उपलब्ध कराना है।
उपरोक्त के अलावा बहुत सी ऐसी सेवाएं हैं, जिनकी चर्चा यहां नहीं की गई है, अगर इन सभी को मूल्यों में मापे तो यह कितनी हो सकती है।
राबर्ट कोंसटैंज़ा (Robert Constanza) और उनके साथियों ने यह अनुमान लगाने का प्रयास किया है, कि प्रकृति से जो भी सेवाएं हमें मिलती हैं, उनका मूल्य कितना हो सकता है।
शोधकर्ताओं के अनुसार जो भी सेवाएं हमें प्रकृति से 1 वर्ष में मिल रही हैं उसकी औसत कीमत 33 ट्रिलियन अमेरिकी डालर आंकी गई है।
जिसको हम बहुत लापरवाही के साथ लेते हैं क्योंकि यह हमें मुफ्त में मिल रही है।
अगर इन सभी इकोसिस्टम सर्विसेज के लिए टैक्स लेने की शुरुवात कर दी जाये तो आप समझ सकते है, क्या होगा?
हो सकता है आने वाले समय में यही हो, अगर हम आज नहीं संभले,और नेचर से मिलने वाले रिसोर्सेज को सही तरह से इस्तेमाल नहीं किया ।
अगर इसी को हम पूरी दुनिया के सकल उत्पाद (global GDP) से मापे तो इकोसिस्टम सर्विसेज (33 ट्रिलियन $) कीमत लगभग 2 गुना है, क्योंकि वैश्विक सकल उत्पाद का मूल्य लगभग 18 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है।
हम क्या कर सकते हैं(Our Role)-
अच्छा छोड़िए इन मूल्यों को क्या हम इतना तो कर ही सकते हैं कि अपने आसपास जो ख़ाली जगह हैं वहां पर पेड़ पौधे लगाएं या अगर घरों में पौधे लगा सकते हैं।
कार्बन का उत्पादन कम से कम करें,जो भी पर्यावरणीय प्रदूषण(Environmental pollution) है उसमें कम भागीदार बने और सबसे ज़रूरी है की जागरूक हो और जागरूकता फैलाएं।
क्योंकि बड़े बड़े पर्यावरणविद (Ecologist & Scientist) और वैज्ञानिक इसी तरह से रोज़ नहीं चिल्ला रहे हैं, कि सुधर जाइए नहीं तो प्रकृति आपको सुधरने का मौक़ा भी नहीं देगी।
कहीं इतनी देर हो न जाए कि हम इन संसाधनों को फिर ना कभी देख पाए।
कोरोना काल में हम सभी को ऑक्सीजन गैस के महत्व के बारे मे बहुत ही अच्छा खासा अंदाजा हो गया है।
उम्मीद है मेरा यह लेख आपको पसंद आएगा और आप इसे दूसरों को भी भेजेंगे।
इससे हो सकता है, कुछ समय के लिए ही हमारे दिमाग में यह चेतना जागे की प्रकृति कितनी दयालु है, और इससे हम कितना कुछ ले रहे हैं, लेकिन यह बदले में आप से कुछ नहीं कहती।
केवल इतना कहती है, जो आप इस्तेमाल कर रहे हो, उसे उसी प्रकार से वापस कर दो।
क्योंकि हम जानते हैं प्रकृति के दो ही नियम है “या तो छोड़ कर जाओ या देकर जाओ” तीसरा कोई नियम नहीं है।