Terror of Bengal।बंगाल का आतंक in Hindi।जलकुंभी के प्रभाव से कैसे बचे

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जलकुंभी-Water Hyacinth

 

जलकुंभी:वैज्ञानिक नाम आइकोर्निया क्रेसिपस (बंगाल का आतंक-Terror of Bengal)

यह भारत में पाया जाने वाला और पूरी दुनिया में पानी पर आसानी से फैलने वाला खरपतवार (unwanted plants) पौधा है।

यह सामान्यता अमेज़न (Amazon-South America) में पाया जाता है, इसका वैज्ञानिक नाम (scientific name) “आइकोर्निया क्रेसिपस” है, पर हिन्दी भाषी क्षेत्रों में इसे “जलकुंभी” (Common water hyacinth), “पटपटा” या “समुद्र सोख” के नाम से जाना जाता है।

                                                                a water body with terror of bengal plant

लेकिन भारत में इसे उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में सबसे पहले बंगाल (in Kolkata-West Bengal) में इसके खूबसूरत फूलों और पत्तियों के कारण लाया गया था।

भारत में इसे “बंगाल के आतंक” (Terror of Bengal) के नाम से भी जाना जाता है यह सामान्यता ऐसे पानी में बहुत तेजी से वृद्धि करता है जोकि रुका(stagnant water) हुआ है।

मतलब कहने का तालाब का पानी यह दूसरे ऐसे जलाशय(water reservoir) जहां पर पानी स्थिर रहता है किंतु नदियों में और दूसरे अस्थिर जलाशयों (running water bodies like river stream) में यह आसानी से वृद्धि नहीं कर पाता।

यह पानी में से ऑक्सीजन को खींच लेता है जिसके कारण पानी में ऑक्सीजन की कमी(oxygen level below) हो जाती है।

जिसका परिणाम यह निकलता है कि वहां पर मौजूद दूसरे जंतुओं, मछलियों और जलीय पौधों(harmful effect on aquatic animals and plants) पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है और उनकी मृत्यु हो जाती है।

हालांकि अब जलकुंभी से खाद (organic fertilizer) भी मनाई जा रही है इसके साथ इसके औषधीय गुणों (medicinal features) के बारे में भी पता चला है।

आर्द्रभूमि या वेटलैंड 

 

आर्द्रभूमि या वेटलैंड क्या होता है? यह किस तरह के क्षेत्र में पाया जाता है?

यह ऐसे भूमि क्षेत्र होते हैं जो कि पानी से डूबे हुए होते हैं। ज़्यादातर वेटलैंड(wet land) में पानी की गहराई 6 मीटर से अधिक नहीं होती है।

                                                                                             a wet land

इस प्रकार के वेटलैंड में जलकुंभी बहुत आसानी से वृद्धि करती है क्योंकि यहां पानी रुका हुआ होता है जबकि कोई भी ऐसे जलाशय जिसका पानी अगर स्थिर नहीं है तो वहां पर जलकुंभी आसानी से वृद्धि नहीं कर पाती है।

भारत में बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर वेटलैंड उपस्थित है।

वेटलैंड को लेकर ही रामसर संरक्षण परियोजना ईरान में 2 फरवरी 1971 को हुई थी जिसमें विश्व के विभिन्न देशों ने वेटलैंड के संरक्षण हेतु एक संधि हुई जिस पर हस्ताक्षर किए गए।

अब तक 169 से अधिक देश वेटलैंड के संरक्षण पर अपनी सहमति बना चुके हैं पूरी दुनिया में अब तक खोजे गए वेटलैंड की संख्या 2200 (2015 की रिपोर्ट के आधार पर) से अधिक है और इनका कुल क्षेत्रफल लगभग 2.1 मिलियन वर्ग किलोमीटर से भी अधिक होता है।

यहां पर पाए जाने वाले पेड़-पौधे जीव जंतु एक अलग तरह के पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं।

शैवाल/एलगी 

शैवाल क्या होते हैं(what are the Algae)-केवल पादप जगत के सबसे सामान्य प्रकार के पौधे यह अधिकतर एककोशिकीय पौधे(belongs to Division Thallophyta-simple unicellular plant) हैं। बातों से बहुत अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं।

और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा इस कार्बन डाइऑक्साइड को ग्लूकोस में बदलते हैं साथ ही वातावरण में आक्सीजन निकालते हैं। 

                                                                                           green algae

 

जिससे वातावरण शुद्ध होता है शैवालों (algae) की बहुत सारी प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से हरे शैवाल, भूरे शैवाल और लाल शैवाल मुख्य हैं।

अगर हम हमारे आसपास के स्थान पर जहां पानी बहुत अधिक गिरता हो या वहां नमी पाई जाती हो, तो हम अक्सर वहां पर हरे रंग की काई(spirogyra green algae-also called pond silk) देखते हैं जो कि असल में एक प्रकार के हरी शैवाल की प्रजाति होती है।

 

शैवाल/एलगी का महत्व

शैवाल/एलगी का महत्व(Role or Economic use of Algae)- उत्तर प्रदेश सरकार का जलकुंभी को हटाने का अनूठा प्रयास(a unique approach of UP Government to remove jalkumbhi)-

उत्तर प्रदेश सरकार जलकुंभी(Common water hyacinth)की परेशानी झेल रहे हैं वेटलैंड(wetland) में न सिर्फ इन्हें हटाने के लिए बड़े स्तर पर अभियान चलाने जा रही है।

साथ ही कार्बन उत्सर्जन (carbon emissions) कम करने के लिए शैवाल(Algae) को और बढ़ावा देने जा रही है।

वेटलैंड में शैवाल की ऐसी प्रजातियां(species) लगाई जाएंगी जो कार्बन को अधिक मात्रा में अवशोषित (absorb) करती हैं।

वन विभाग (UP. forest department) इसके लिए बड़ी प्लानिंग (planning) करने में जुड़ गया है|

पूरे प्रदेश में 2 हेक्टेयर से बड़े करीब सवा लाख वेटलैंड है।

पेड़ पौधों की तुलना में शैवाल कई गुना अधिक कार्बन सोखने की क्षमता रखते हैं। यूं तो वेटलैंड में प्राकृतिक रूप से ही शैवाल होते हैं।

लेकिन अब वन विभाग इन में ऐसी प्रजातियां लगाने जा रहा है जो पर्यावरण(more favorable to environment) की नज़र से अधिक फायदेमंद है।

शैवाल अपने आसपास के कार्बन उत्सर्जन और ग्रीन हाउस गैसों(green house gases like methane, carbon dioxide, carbon monoxide etc) को सोंख कर उन्हें सीधे-सीधे पर्यावरण में जाने से रोकते हैं।

वन विभाग(uttar Pradesh forest department) वेटलैंड में जलकुंभी की समस्या से निपटने के लिए और बहुत बड़ा अभियान चलाएगा।

जलकुंभी से पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है जिसका असर यह होता है कि अन्य जलीय जंतुओं और वनस्पति का दम घुटने (due to decreasing of oxygen) लगता है।और उनकी मृत्यु हो जाती है वेटलैंड में इसे मज़दूर लगा कर जलकुंभी को निकाला जाता है।

वहीं क्षेत्र में मशीनों के ज़रिए जलकुंभी निकाली जाती है।

वन विभाग जलकुंभी निकालने के लिए बड़ा अभियान चलाकर वहां शैवालों के बीज डालेगी।

दरअसल वेटलैंड मौजूद शैवाल संतुलन को बनाए रखने में सबसे ज़रूरी भूमिका निभाते हैं।

शैवाल पौधों से अलग करीब 60% ऑक्सीजन (release oxygen in their surroundings more efficiently) की आपूर्ति करते हैं।

इसके साथ ही कार्बन को अपने अंदर सोखते हैं।

इससे जलीय जीवो को जल के अंदर रहने का अनुकूल माहौल मिलता है और सांस लेने के लिए ज़्यादा ऑक्सीजन मिलती है।

किसी तालाब से बदबू (bad smell) आने का मतलब यह नहीं कि वहां शैवाल (Algae) नहीं है।

शैवाल की उपयोगिता को देखते हुए वन विभाग इसे वेटलैंड में अधिक से अधिक लगाने के लिए कार्य योजना बना रहा है।

इसके अलावा सरकार प्रदूषण नियंत्रण (pollution control) के लिए हर साल बड़ी संख्या में पौधारोपण (plantation) भी कर रही है ।

प्रदेश सरकार ने इस साल 30 करोड़ पौधारोपण (plantation) किया है।

पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड (carbon dioxide) को अवशोषित कर पर्यावरण को शुद्ध (purify the environment) रखते हैं।

30 करोड़ पौधे आगे चलकर 8.83 लाख मीट्रिक टन कार्बन को अवशोषित करेंगे और साथ ही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में ग्लूकोज़ और ऑक्सीजन वातावरण में निकालेंगे जिससे वातावरण शुद्ध होगा।

 

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