बहुजीनी वंशागति क्या है?(What is Polygenic inheritance)
क्या आप जानते हैं कि हमारी त्वचा का रंग का निर्धारण आखिर किस प्रकार से होता है?
आखिर क्या कारण है कि किसी की त्वचा का रंग बहुत ज़्यादा सफेद किसी का हल्का और किसी का बहुत ज़्यादा गहरा होता है
क्या यह भी दूसरे अनुवांशिक लक्षणों की तरह से ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाते हैं?
क्या बहुत ज्यादा धूप में रहने से या गर्मी में रहने से भी त्वचा का रंग काला पड़ता है या ठंडे प्रदेशों में पाए जाने वाले लोगों में त्वचा का रंग कम काला होता है?
क्या केवल वातावरण के प्रभाव से ही त्वचा का रंग काला होता है और यदि सही और कंठ ठंडा वातावरण दिया जाए तो त्वचा के रंग पर कोई प्रभाव पड़ेगा?
इन सारी प्रश्नों का उत्तर समझने के लिए हमें मेंडल जिन्हें अनुवांशिकी का पिता कहा जाता है उनके द्वारा कराए गए प्रयोगों को समझना होगा।
हालांकि हमारे पास इतना समय नहीं है कि मेंडल के प्रयोगों को बहुत ज़्यादा गहराई से यहां पर समझाया जा सके।
तापमान व धूप का प्रभाव(Effect of temperature and Sunlight)-
देखिए यह तो हम सभी जानते ही हैं कि माता-पिता या दादा-दादी या नाना-नानी की त्वचा का जो रंग होगा उसकी वंशागति अगली पीढ़ी में होगी, लेकिन हमेशा यही सही नहीं होता।
हो सकता है कि माता पिता का त्वचा का रंग साफ हो लेकिन जो अगली पीढ़ी आ रही है वह ऐसे वातावरण में हो जहां पर तापमान बहुत ज़्यादा हो या वह बहुत ज़्यादा धूप में हो।
इस स्थिति में त्वचा से मेलानिन नामक वर्णक का निर्माण बढ़ जाता है और त्वचा का रंग गहरा काला हो जाता है-
चलिए अब हम इसे वैज्ञानिक तरीके से समझते हैं।
मनुष्य में त्वचा के रंग की वंशागति बारे में के बारे में सर्वप्रथम अध्ययन डेवन पोर्ट (Daven port) ने किया था।
मनुष्य में त्वचा का रंग तीन जीनों द्वारा निर्धारित होता है इन्हें हम A,B, और C के नाम से जानते हैं।
यदि जीनोटाइप AABBCC है तब त्वचा का रंग ज्यादा गहरा होगा क्योंकि यह तीनों ही प्रभावी जीन है।
और यह बहुत अधिक मेलानिन वर्णक (Melanin pigment) का उत्पादन शरीर में करवाएंगे जिससे शरीर का रंग गहरा होगा।
लेकिन यदि जीनोटाइप aabbcc है तब त्वचा का रंग सबसे हल्का होगा क्योंकि यह तीनों जीन अप्रभावी हैं।
इसी प्रकार अगर जीनोटाइप AaBbCc है तो त्वचा का रंग बीच का होगा।
उपरोक्त के अलावा यदि जीनोटाइप दूसरे प्रकार के हैं तो त्वचा के रंग में भी अलग प्रकार का फिनोटाइप दिखाई देगा जैसे कि नीचे चित्र में दिखाया गया है।
इंसानों में त्वचा के रंग की वंशागति को समझने के लिए ट्राई हाइब्रिड क्रॉस (Tri Hybrid Cross) करा कर देख सकते हैं।
इस क्रॉस के परिणाम में हमें कुल 64 संयोजन मिलते हैं, जिनको निम्न फीनोटिपिक अनुपात में विभाजित किया जा सकता है।
1:6:15:20:15:6:1
a-1 की त्वचा बहुत काले रंग (very dark or black) की होगी
b-6 की त्वचा काले रंग (dark) की होगी
c-15 की त्वचा हल्के काले रंग (Fairly dark) की होगी
d-20 की त्वचा का रंग बीच (intermediate in colour) का होगा ना बहुत काला ना ही बहुत सफ़ेद
e-15 की त्वचा हल्के सफ़ेद रंग (fairly light colour)की होगी
f-6 की त्वचा सफ़ेद रंग (light colour)की होगी
g-1 की त्वचा बहुत सफ़ेद (very light or white colour)होगी
मेंडल के अनुवांशिकी के अध्ययन(Mendel’s inheritance work)-
यदि हम मेंडल के नियमों को देखें तो यह पता चलता है की ज़्यादातर लक्षण स्पष्ट रूप से अलग-अलग होते हैं।
जैसे कि मटर के पौधों की ऊंचाई की बात की जाए तो बौनापन और लंबापन बिल्कुल अलग-अलग होंगे।
और कोई बीच की ऊंचाई नहीं होगी इनमें से एक लक्षण प्रभावी होगा वही दूसरा लक्षण अप्रभावी होगा
इसी प्रकार से फूलों का रंग जो बैंगनी या सफेद होता है यहां भी कोई बीच का रंग नहीं आएगा या तो बैंगनी रंग के फूल होंगे या सफेद रंग के फूल होंगे।
जो भी इनमें प्रभावी होगा वही लक्षण ज़्यादातर अगली पीढ़ी दिखाई देगा।
लेकिन यह जरूरी नहीं कि इस प्रकार का लक्षण और उनकी वंशागति हर जीवो में पाया जाए जैसे कि हम अगर मनुष्यों में देखें तो केवल लंबे और बौने ही व्यक्ति नहीं पाए जाते हैं।
बल्कि ऊंचाई में सभी प्रकार की लंबाई मिल सकती है।
मेंडल के नियमों और उनके अनुवांशिकी पर कार्यों के लिए आप और अधिक इस लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं click here
बहुजीनी वंशागति(polygenic inheritance)-
इस प्रकार के लक्षण 3 या अधिक जीनो द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं अतः इस प्रकार के लक्षणों को बहुजीनी लक्षण कहा जाता है और इनकी वंशागति बहु जीनी वंशागति कहलाती है।
साथ ही हम यह भी देखते हैं की बहुजीनी लक्षणों की वंशागति पर पर्यावरण का भी प्रभाव पड़ता है।
जैसे कि मानव के त्वचा का रंग, गेहूं के कर्नेल का रंग(Kernel colour of Wheat),मक्के के काब की लंबाई(length of corn cob), मनुष्यों मे बुद्धि का स्तर,जानवरों में मीट और दूध उत्पादकता,इंसानों की लंबाई और साथ ही साथ बहुत से फ़सल के पौधों की उत्पादकता बहुजीनी वंशागति का उदाहरण है।
बहुजीनी वंशागति में प्रत्येक जीन या एलील अपना योगदान देता है जैसे-जैसे प्रभावी जीन की संख्या बढ़ती जाएगी वैसे ही लक्षण भी स्पष्ट रूप से ज़्यादा प्रभावी दिखाई देने लगते हैं।
वैज्ञानिक अध्ययन(Scientific study on polygenic inheritance)-
बहुजीनी वंशागति के बारे में सबसे पहले अध्ययन जे.कॉल रियुटर (J.Kolreuter) ने 1760 में किया था जब वह तंबाकू के पौधों की ऊंचाई पर अध्ययन कर रहे थे।
1883 में एफ.गाल्टन(F.Galton) में इंसानों की ऊंचाई और बुद्धि पर (Height & Intelligence in Human Being) अध्ययन किया।
नीलसन.एले (Nilsson-Ehle) ने 1908 में सबसे पहले प्रायोगिक तथ्य बहुजीनी वंशागति के प्रस्तुत किए जो कि गेहूं के कर्नेल के रंगों की वंशागति पर आधारित था।
यह देखा गया है कि बहुजीनी वंशागति पर वातावरण का भी प्रभाव बहुत आसानी के साथ पढ़ता है।
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