ग्रेगर जॉन मेंडल(Gregor Johann Mendel 1822-1884)-
ग्रेगर जॉन मेंडल को अनुवांशिकी का पिता कहा जाता है क्योंकि इन्होंने वंशागति के नियम सबसे पहले दिए।
इन्होंने लगभग 7 सालों तक मटर के पौधों पर अपने अनुवांशिकी के अध्ययन किए।
मेंडल ने दुनिया के सामने अपने परीक्षणों (एक्सपेरिमेंट्स) के परिणामों को क्रमबद्ध करके यह बताया कि, अनुवांशिक लक्षणों का प्रसार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में किस प्रकार से होता है।
मेंडल ने यह भी बताया कौन से लक्षण प्रभावी होते हैं और अगली पीढ़ी में प्रदर्शित होंगे और कौन से लक्षण अप्रभावी होते हैं जो अगली पीढ़ी में नहीं दिखाई देते हैं।
उपरोक्त के आधार पर मेंडल ने अनुवांशिकी के तीन नियम दिए जिनमें से दो नियम आज भी कार्यशील है।
लेकिन प्रथम नियम अब मान्य नहीं है क्योंकि उसके बहुत सारे अपवाद प्रकृति में उपस्थित हैं।
प्रारंभिक जीवन (Early Life)-
मेंडल सिलिसिया(Silisian) गांव में सन् 1822 ईस्वी में एक किसान परिवार में पैदा हुए थे यह गांव ब्रून(Brunn) शहर में आता है जो कि ऑस्ट्रिया(Austria) नामक देश में है।
अपनी शुरुआती शिक्षा पूरी करने के बाद मेंडल चर्च से(1843 में ) जुड़ गए जहां ये बाद में (1847)ये पादरी हो गए।इनके नाम में ग्रेगर शब्द चर्च से जुड़ने के बाद मिला।
सन् 1851 ईस्वी में विएना विश्वविद्यालय (University of Vienna) गए जहां पर इन्होंने वनस्पति विज्ञान और भौतिक विज्ञान का अध्ययन किया।
वापस आकर भौतिक विज्ञान और प्राकृतिक विज्ञान के अध्यापक हो गए। और लगभग 14 सालों तक अध्यापक के तौर पर ज्ञान बांटते रहें।
संकरण के प्रयोग (Hybridization Experiments on Garden pea plant)-
सन् 1856 में इन्होंने अपने चर्च के बगीचे में देखा कि मटर के पौधों में दो प्रकार के बीज उत्पन्न होते हैं। कुछ तो गोल आकार के और कुछ का आकार सिकुड़ा हुआ है।
जिससे इनके अंदर जिज्ञासा उत्पन्न हुई और इन्होंने अपने संकरण के प्रयोग (Hybridization Experiments)लगभग 7 सालों तक सन् 1856 से 1863 तक मटर के पौधों पर किया।।
शुरुआत में इन्होंने लगभग 34 लक्षणों को परीक्षण में लाया,उसके बाद इन्होंने 22 जोड़ी लक्षणों को अपने प्रयोग में लाया।
लेकिन बाद में कुल 7 जोड़ी लक्षणों(Traits) को इन्होंने अंतिम रूप से परीक्षण में उपयोग किया यह सात जोड़ी लक्षण मटर के पौधों के निम्न प्रकार हैं-
जैसे-
1-फूलों का रंग,
2-फूलों की पौधों पर स्थिति,
3-पौधों की ऊंचाई,
4-फलियों का आकार,
5-फलियों का रंग,
6-बीज का आकार,
7-बीज का रंग
मटर के पौधों पर प्रयोग के कारण–
मेंडल ने मटर के पौधों पर अपने अध्ययन किए इसकी मुख्य वजह निम्नलिखित है।
1-मटर में 7 जोड़ी (14) क्रोमोसोम होते हैं।
2-शुद्ध वैरायटी मटर की उपस्थित थीं।
3-इसमें सारे लक्षण आसानी से दिखाई देते हैं।
4-फूलों का आकार संकरण में मदद करता है और आसानी से स्वपरागण (Self Pollination) किया जा सकता है।
5-मटर के फूल सामान्यता बंद होते हैं जिससे स्वपरागण होने की संभावना हमेशा बनी रहती है।
6-यह एक वर्षीय पौधा है और इसकी जीवन अवधि लगभग 3 महीने होती है अतः परिणाम जल्दी आ जाता है।
7-सफल परागण के बाद बहुत अधिक मात्रा में बीज उत्पन्न होते हैं।
8-स्वपरागण (Self Pollination) के उपरांत,बहुत ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है।
9-द्विलिंगी(bisexual) पुष्प उपस्थित होते हैं।
मेंडल की सफलता के कारण(Reason of Mendel Success)–
मेंडल की सफलता के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
1-मेंडल ने मटर की उन्हीं ट्रेट्स का अध्ययन किया जिनमें किसी भी प्रकार का लिंकेज, अपूर्ण प्रभाविता या सहप्रभाविता नहीं पाई जाती थी।
2-मेंडल ने अपने प्रयोगों को ध्यानपूर्वक देखा और सभी संकरण का पूरा रिकॉर्ड रखा।
3-जो भी ट्रेट्स मंडल ने चुना वाह एकदम सही रूप से दिखाई देते थे जैसे लंबा और बौनापन हरा और पीला रंग बीजों का।
4-मेंडल ने केवल शुद्ध वैराइटीज(pure varieties) का अपने प्रयोगों में इस्तेमाल किया और लगभग 2 साल तक इनकी शुद्धता को चेक किया।
5-मेंडल ने अपने प्रयोगों को मटर पर 3 या उससे ज्यादा पीढ़ियों तक देखा इन्होंने रिसिप्रोकल क्रॉस(Reciprocal Cross) भी कराया।
6-मेंडल ने सर्वप्रथम गणित और सांख्यिकी तरीकों (Mathematical Logic & Statistical Methods) का इस्तेमाल जीव विज्ञान (Biology) में किया।
7-मेंडल सौभाग्यशाली थे कि उन्होंने जिन भी ट्रेट्स को चुना उनके जीन में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं पाया जाता था।
Why Mendel work Unrecognized-
मेंडल ने लगभग 7 सालों तक अपने संकरण और के प्रयोग किए और उसे प्रोसीडिंग ऑफ ब्रून नेचुरल साइंस सोसायटी(Proceedings of Brunn Natural Science Society) में प्रस्तुत किया लेकिन लगभग 34 सालों तक उनके कार्य को दुनिया नहीं समझ पाई जिसके मुख्य कारण निम्नलिखित थे।
1-वैज्ञानिक वर्ग उस समय डार्विन (Darwin) की थ्योरी (Origin of Species by Natural Selection) के बहुत ज्यादा प्रभाव में था।
2-मेंडल की व्यक्तित्व में बहुत ज्यादा प्रभावीपन नहीं था।
3-इन्होंने सांख्यिकी और गणितीय मॉडल का प्रयोग किया जो उस समय के वैज्ञानिकों के लिए एकदम नया था।
4-मेंडल कारक (जीन) के बारे में कोई भौतिक प्रामाणिकता नही दे सके।
5-इन्होंने हाक्वीड(Hawkweed) पर नगेली (Naegeli) के कहने पर भी प्रयोग किया था जिसमें वह असफल हो गए थे।
6-प्रोसीडिंग आफ बु्न नेचुरल साइंस सोसायटी का वितरण बहुत सीमित होता था।
मेंडल के प्रयोगों की पुनः खोज(Rediscovery of Mendel Work)-
मेंडल की मृत्यु अट्ठारह सौ चौरासी ईसवी(1884) में हुई और इन्होंने अपने प्रयोगों को अट्ठारह सौ पैसठ ईसवी (1865) में प्रस्तुत किया था।
लेकिन चौतीस 34 वर्षों तक दुनिया इनके प्रयोगों को नहीं समझ पाई।
सन उन्नीस सौ (1900) में तीन अलग-अलग वैज्ञानिकों ने मेंडल के प्रयोगों की पुनः खोज की और उसी नतीजे पर पहुंचे जिस पर मेंडल काफी समय पहले अपने प्रयोग कर चुके थे।
यह वैज्ञानिक हृगो डी ब्रिज-होलेंड (Hugo de Vries of Holland) के थे, कार्ल कोरेंस-जर्मनी (Carl Correns of Germany) के और तेशरमैक ऑस्ट्रिया(Von Tschermak) के थे।
कोरेंस ने मेंडल के दो नियम(Law of Segregation & Independent Assortment) प्रस्तुत किया।
हृगो डी ब्रिज को मेंडल के प्रयोगों के पेपर मिले और उसे उन्होंने फ्लोरा(Flora) में 1901 में छपवाया।
मेंडल के वंशागति नियम(All Mendel’s Law of Inheritance)-
मेंडल ने मटर के पौधों पर किए गए प्रयोगों के आधार पर तीन नियम दिए जोकि निम्नलिखित हैं-
1-पहला प्रभाविता का नियम(Law of Dominance)
2-दूसरा विसंयोजन का नियम(Law of Segregation)
3-तीसरा स्वतंत्र अप्व्युहन का नियम(Law of of Independent Assortment)
प्रभाविता के नियम(Law of Dominance)-
इस नियम अनुसार यदि दो विपरीत लक्षणों के बीच में अगर संकरण कराया जाए तो अगली पीढ़ी में केवल एक ही लक्षण दिखाई देंगे।
इन लक्षणों को प्रभावी लक्षण और जो लक्षण नहीं दिखाई देंगे उन्हें प्रभावी लक्षण कहते हैं।
जैसे यदि बैंगनी और सफेद फूलों को संकरण कराया जाए तो अगली पीढ़ी में सभी पौधे बैंगनी रंग का फूल उत्पन्न करेंगे अतः यहां पर बैंगनी रंग प्रभावी होगा जबकि सफेद फूलों का रंग अप्रभावी होगा
विसंयोजन का नियम(Law of Segregation or non mixing of Alleles or Purity of gametes)-
इस नियम अनुसार जब भी युग्मक (Gamete)बनते हैं तो वह हमेशा शुद्ध(Pure) होंगे, यदि जीनोटाइप हेटरोज़ाइगस है तो भी यह शुद्ध होंगे यहां पर दो अलग-अलग एलील है।और युग्मक बनने के दौरान आपस में नहीं मिलेंगे और शुद्ध रूप से एक दूसरे से अलग हो जाएंगे
स्वतंत्र अप्व्युहन का नियम (Law of of Independent Assortment)-
इस नियम अनुसार अगर 4 जोड़ी विपरीत लक्षणों का आपस में संकरण कराया जाए तो पहली पीढ़ी में केवल प्रभावी लक्षण दिखाई देंगे।
लेकिन अगर पहली पीढ़ी का स्वपरागण कराया जाए तो दूसरी पीढ़ी में पुराने और नए लक्षण निम्न अनुपात में दिखाई देंगे।
फेनोटाइप अनुपात 9:3:3:1
हम जानते हैं कि युग्मक बनने के दौरान जीन अथवा एलील एक दूसरे से अलग होते हैं और फिर स्वतंत्र रूप से निषेचन के समय मिलते हैं।
इससे नए प्रकार के संयोजन बनते हैं साथ ही पुराने संयोजन भी दिखाई देते हैं।