बहुप्रभाविता(प्लियोट्रॉपी-Pleiotropy & Pleiotropic Gene)
वह घटना है जिसमें एक ही जीन जो एक ही समय में बहुत से प्रभाव दिखाता है, ऐसे जीन को प्लियोट्रॉपिक जीन कहते हैं तथा इस घटना को प्लियोट्रॉपिज्म या प्लियोट्रॉपी(बहुप्रभाविता) कहते हैं।
ऐसे जीन जो दो या दो से अधिक प्रभाव को अथवा लक्षणों को एक ही समय में दिखाते हैं अथवा उत्पन्न करते हैं ऐसे जीन को प्लियोट्रॉपिक जीन कहते हैं।
प्लियोट्रॉपिक (बहुप्रभावी)जीन के प्रभाव को सर्वप्रथम ग्रेगर जॉन मेंडल (अनुवांशिकी के पिता) ने देखा था जब वह मटर के पौधों पर अपने अध्ययन कर रहे थे।
हम जानते हैं कि जीन का अंतिम उत्पाद, कोई प्रोटीन अथवा एंजाइम्स होता है, और यह प्रोटीन अथवा एंजाइम्स सीधे तौर पर शरीर की विभिन्न रासायनिक क्रियाओं में भाग लेते हैं और इनके अनुपस्थिति में वह रासायनिक क्रियाएं सही प्रकार से नहीं चल सकती।
इन सारी रासायनिक क्रियाओं को जो किसी भी जीवों को जीवित रखने के लिए आवश्यक है सम्मिलित रूप से, मेटाबोलिक प्रक्रियाएं कहते हैं।
इस प्रकार के जीन के उत्पाद एक से अधिक मेटाबोलिक क्रियाओं में सीधे तौर पर इस्तेमाल होते हैं अतः कई प्रकार के लक्षण एक ही समय में दिखाई देते हैं, यद्यपि यह ज़रूरी नहीं कि सारे लक्षण एक समान रूप से प्रदर्शित हो।
कभी-कभी प्लियोट्रॉपिक(बहुप्रभावी) जीन प्रभाव किसी एक अवस्था में अधिक दिखाई देता है वहीं दूसरी अवस्था में लक्षण कम दिखाई देता है।
प्लियोट्रॉपी (बहुप्रभाविता) के निम्नलिखित उदाहरण हैं, जैसे कि-
सिकल सेल एनीमिया बीमारी(Sickle cell Anaemia Disease),
फिनायलकेटोनयूरिया बीमारी (Phenyketone Urea),
मटर के बीजों में स्टार्च कणों का निर्माण व फूलों के रंगों पर(Starch grain in Pea seed),
तथा कॉटन के पौधों में (in Cotton plants).
मटर में स्टार्च कण निर्माण (Starch Synthesis in Pea Plant)-
मटर के बीजों में जो जीन स्टार्च के निर्माण को नियंत्रित करता है वह एक से ज्यादा प्रभाव दिखाता है इस जीन के दो एलील होते हैं जो कि B और b हैं।
अगर जीनोटाइप BB होता है तब बड़े आकार के स्टार्च के कण बनेंगे और बीज जब पूरी तरह से तैयार हो जाएगा तो यह बड़ा और गोलाकार होगा।
अगर जीनोटाइप bb होता है तब छोटे आकार के स्टार्च के कण बनेंगे जिसकी वजह से बीज सिकुड़ जाएगा।
अगर जीनोटाइप Bb है तो बीज का आकार गोल तो होगा, लेकिन स्टार्च के कण बीच के आकार के बनेंगे इस प्रकार बीज मध्यम आकार का होगा।
अगर हम स्टार्च के कणों को जीनोटाइप मान लें तब (Bb) एलील इनकंप्लीट डोमिनेंस दिखाते हैं।
फिनायल केटोन यूरिया(phenylketonuria-PKU)-
PKU जन्मजात अनुवांशिक मेटाबोलिक बीमारी है जिसमें एंजाइम, जिसका नाम फिनाइल एलानिन हाइड्रोक्सीलेज़ है नहीं बन पाता है।
यह एंजाइम यकृत में फिनाइल एलानिन(phenylalanine) अमीनो एसिड को टायरोसिन(tyrosine) नामक अमीनो एसिड में बदलता है।
क्योंकि उपरोक्त एंजाइम अनुपस्थित होता है इसलिए फिनाइल एलानिन शरीर के अंदर इकट्ठा होता जाता है और यह बदल जाता है फिनाइल पाइरूविक एसिड और दूसरे संबंधित रसायनों में।
मेलानिन (Melanin) वर्णक (Pigment) की कमी होने की वजह से आंखों और बालों के रंगों पर भी प्रभाव पड़ता है और जिससे इनका रंग हल्का हो जाता है।
इस एंजाइम के नहीं बनने का मुख्य कारण एक असमान अप्रभावी जीन(abnormal recessive gene) का होना है जो कि क्रोमोज़ोम संख्या 12 (chromosome number 12) पर पाया जाता है।
इस प्रकार के बच्चों में जन्म के कुछ ही हफ्तों बाद फिनाइलएलानिन की मात्रा रक्त के प्लाज़्मा में 30 से 50 गुना तक बढ़ जाती है जो दिमाग अथवा मस्तिष्क के (harmful effects on brain development) वृद्धि पर बहुत प्रभाव डालती है और लगभग 6 महीनों बाद बहुत ज्यादा प्रभाव दिमाग पर दिखाई देने लगता है
अगर इस प्रकार के बच्चों को सही समय पर इलाज ना दिया जाए तो यह बच्चे सही प्रकार से न ही चल सकते हैं और बोलने में भी परेशानी होती है।
यद्यपि बहुत अधिक मात्रा में किडनी फिनाइलएलानिन (kidneys excrete phenylalanine) का उत्सर्जन करते हैं, क्योंकि किडनी द्वारा यह आसानी से पुनः अवशोषित नहीं होता।
यह बीमारी तभी होती है जब दोनों अप्रभावी जीन एक साथ उपस्थित हों और होमोजाईगयस( homozygous) अवस्था में हों।
हेटरोजाईगयस(heterozygous) व्यक्तियों में यह बीमारी नहीं दिखाई देती, लेकिन वह कैरियर होते हैं और अपनी अगली पीढ़ी में इस प्रकार के लक्षण को पहुंचाते हैं।
प्लियोट्रॉपी कॉटन के पौधों में (Pleiotropy in cotton plants)-
देखा गया है कि जो जीन कॉटन के पौधों में रोए को प्रभावित करता है वही जीन काटन के पौधों के ऊंचाई,कॉटन बॉल का आकार, ओव्यूल की संख्या और बीजों के जीवन अवधि (height of plant, size of cotton ball, number of ovules and life span of seed) को भी निर्धारित करता है।
सिकल सेल एनीमिया(Sickle cell Anaemia)-
यह रक्त संबंधित अनुवांशिक बीमारी है जिसमें लाल रक्त कोशिकाओं जिन्हें इरेथरोसाइट (RBC or Erythrocyte) भी कहा जाता है इनमें असामान्य हीमोग्लोबिन बनने की वजह से आकार सिकुड़ (due to abnormal haemoglobin RBC become sickle shape) कर सीकल आकार का या हसिया के आकार का हो जाता है
जिससे ऑक्सीजन प्रवाह करने की क्षमता पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इस रोग के जीन क्रोमोज़ोम (chromosome number 11) संख्या 11 पर उपस्थित होते हैं।
मटर के पौधों में (बहुप्रभाविता-Pleiotropism in Pea)-
इसी प्रकार से जो जीन मटर के पौधों में फूलों के रंगों को प्रभावित करता है वही जीन बीज के आवरण के रंगों को प्रभावित करता है, साथ ही साथ लाल रंग के धब्बों को पत्तियों की एक्सिल (pleiotrpic gene affects flower colour, seed coat and red spots on leaf axile) को भी प्रभावित करता है।
अंत में(Conclusion)-
इस आर्टिकल में हमने यह समझा कि कैसे एक ही जीन में बदलाव होने की वजह से वह एक से अधिक फीनोटीपिक प्रभाव (more than one phenotypic effects) दिखाता है।
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अपना क़ीमती समय देने के लिए आप का बहुत
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