कैसे हमारा इम्यून सिस्टम या प्रतिरक्षा तंत्र शारीरिक कोशिकाओं और बाहरी कोशिकाओं में विभेद करता है?
हम सभी रोज़ हजारों बैक्टीरिया, वायरस और अनेक रोग पैदा करने वाले सूक्ष्मजीवों के संपर्क में आते हैं लेकिन हमें कोई भी रोग रोज ही नहीं होता इसका पूरा श्रेय हमारे शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को जाता है।
आज के ब्लॉग में हम यह समझने का प्रयास करेंगे आख़िर कैसे हमारा इम्यून सिस्टम शरीर की कोशिकाओं को बिना नष्ट किए हुए बाहर से आए हुए रोगजनक सूक्ष्मजीवों को ख़त्म करता है।
आखिर प्रतिरक्षा तंत्र और उसकी कोशिकाएं किस तरह से इतना सटीक पहचान कर पाती हैं कि शरीर के अंगों, उनकी कोशिकाओं को, उत्तक को और शरीर में पाए जाने वाले विभिन्न एंटीजेंस कोअपने जै सा ही समझे और बाहरी एंटीजन और कोशिकाओं को सुचारू रूप से बाहर निकालती रहे हैं या उन्हें इस प्रकार से नष्ट करती रहें कि शरीर को कोई नुकसान ना हो।
इसके साथ हम यह भी देखेंगे अगर प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाओं में शारीरिक और बाहरी कोशिकाओं में विभेदन ख़त्म करने की काबिलियत समाप्त हो जाए या उनमें कोई बदलाव हो जाए, तब तक शरीर में किस प्रकार के रोग पैदा हो जाते हैं?
प्रतिरक्षा तंत्र का संगठन(Organisation of Immune System):
हमारा प्रतिरक्षा तंत्र लिंफाइड अंगों, लिंफाइड उत्तकों, प्रतिरक्षी कोशिकाओं और घुलनशील प्रोटीन पदार्थ जिनको हम एंटीबॉडी कहते हैं, मिलकर कर बना होता है।
प्रतिरक्षा तंत्र एक विशेष रूप से शरीर के दूसरे अंगों के साथ समन्वय करता है और शरीर की कोशिकाओं को बिना नुकसान पहुंचाये, बाहर से आई हुई हानिकारक कोशिकाओं या सूक्ष्म जीवों को नष्ट करता है।
क्या होते हैं उनकी एंटीबॉडी जानने के लिए यहां क्लिक करें
कैसे प्रतिरक्षी कोशिकाएं हैं शरीर और बाहरी कोशिकाओं में विभेद करती हैं?
प्रतिरक्षी कोशिकाओं में यह क्षमता प्राकृतिक रूप से पाई जाती है कि वह शरीर की कोशिकाओं को बिना नुकसान पहुंचाए बाहरी कोशिकाओं को ख़त्म करें क्योंकि हमारे शरीर पर की कोशिकाओं पर एक विशेष प्रकार के एम.एच.सी एंटीजन (MHC Antigen) उपस्थित होते हैं
जो बाहर से प्रवेश करने वाली कोशिकाओं में नहीं होते हैं, यही एंटीजन मदद करते हैं प्रतिरक्षी कोशिकाओं को, कि वह शरीर की कोशिकाओं को अपनी कोशिकाएं के तौर पर पहचानें और बाहरी कोशिकाओं को नष्ट कर दें।
क्या होते हैं एम.एच.सी (MHC Antigen) एंटीजन?
इसका पूरा नाम मेजर हिस्टो कंपैटिबिलिटी कॉन्प्लेक्स (Major Histocompatibility Complex-MHC) है, यह एक प्रकार का एंटीजन है जो रासायनिक रूप से प्रोटीन होता है और हमारी शरीर की कोशिकाओं की प्लाज्मा झिल्ली पर उपस्थित होता है
यह एक प्रकार के सिग्नल(signal) का कार्य करता है जिससे हमारी प्रतिरक्षी कोशिकाएं यह समझ सके की जिन कोशिकाओं पर एम.एच.सी उपस्थित है वह शरीर की कोशिकाएं हैं और जिनमें यह अनुपस्थित है वह बाहरी कोशिकाएं हैं।
क्योंकि रोग पैदा करने वाले हैं सूक्ष्मजीवों चाहे वह बैक्टीरिया हो, वायरस हो यह दूसरे सूक्ष्मजीवों उनमें एम.एच.सी अनुपस्थित होता है जिससे प्रतिरक्षी कोशिकाओं को यह मदद मिलती है कि, वह उन्हें खत्म कर सकें और शरीर की कोशिकाओं को ना नुकसान पहुंचाएं।
एम.एच.सी के अलग-अलग क्लास है जैसे,
एम.एच.सी क्लास-।(प्रथम)(MHC Class I)
एम.एच.सी क्लास-।।(MHC Class II)
एम.एच.सी क्लास-III।(MHC Class III)
प्रतिरक्षी कोशिकाओं में याद रखने की क्षमता
अगर फिर से वही सूक्ष्मजीव शरीर पर आक्रमण करे तो यह उसे और तेज़ी के साथ ख़त्म कर सकें, इस प्रकार इसमें याद रखने की क्षमता भी होती है।
शरीर में किसी रोग से बचाव के लिए जितनी भी वैक्सीनेशन या टीकाकरण होता है वह प्रतिरक्षी कोशिकाओं को यह याद करने में मदद करता है की भविष्य में इसी प्रकार के एंटीजन आ सकते हैं ताकि वह पहले से ही तैयार हो रहे हैं और समय रहते हैं उन्हें ख़त्म कर दें।
जैसे कि कोरोना के लिए जो टीकाकरण चल रहा है वह प्रतिरक्षा तंत्र के याद रखने की क्षमता पर ही आधारित है।
जब किसी को कोरोना का टीका लगाया जाता है तो उसके अंदर विशेष प्रतिरक्षी प्रोटीन या एंटीबॉडी का निर्माण हो जाता है और यह एंटीबॉडी भविष्य में कोरोना वायरस के इंफेक्शन होने पर आसानी से हमें बचा लेते हैं इसीलिए इसकी एक से ज्यादा बूस्टर डोज़ की आवश्यकता पड़ती है।
प्रतिरक्षी कोशिकाओं में स्पेसिफिसिटी की क्षमता
प्रतिरक्षी कोशिकाओं में एक और विशेष क्षमता होती है वजह है कि यह अलग-अलग प्रकार के सूक्ष्म जीवों के लिए जो लोग पैदा कर सकते हैं अलग-अलग तरह के एंटीबॉडी का निर्माण करती है, कहने का मतलब यह है
कि अगर प्रतिरक्षी कोशिकाएं किसी बैक्टीरिया को ख़त्म कर रहीं हैं और उसी से मिलता जुलता दूसरा बैक्टीरिया शरीर में प्रवेश कर रहा है तो उसके लिए अलग तरह के एंटीबॉडी का निर्माण किया जाएगा।
हम सभी को पता है कि एंटीबॉडी कितने प्रकार के होते हैं और अगर आप नहीं जानते हैं, तो आप यहां पर क्लिक करके एंटीबॉडी के प्रकार को समझ सकते हैं।
क्या होगा अगर प्रतिरक्षा तंत्र बाहरी और शरीर की कोशिकाओं में विभेद ना कर सकें?
अगर हमारे शरीर का प्रतिरक्षा रक्षा तंत्र और प्रतिरक्षी कोशिकाएं बाहरी और शारीरिक कोशिकाओं में विभेद करने की काबिलियत किसी भी प्रकार से नष्ट हो जाए या उनमें किसी भी तरह का बदलाव हो जाए तो वह शरीर की कोशिकाओं को ही बाहरी कोशिकाएं समझ कर नष्ट करने लगती हैं और इससे ऑटोइम्यून बीमारी हो जाती है।
इसका सबसे अच्छा उदाहरण रियुमैटाएड अर्थराइटिस है जिसमें म्युटेंट या उत्तपरिवर्तित एंटीबॉडी बन जाती हैं, जो शरीर में कार्टिलेज को नष्ट करती हैं इससे जोड़ों में दर्द और सूजन आ जाती है।
अभी तक ऑटोइम्यून बीमारी का के बारे में सही-सही पता नहीं चला है लेकिन ऐसा माना जाता है कि इसका कारण अनुवांशिक बदलाव या वातावरणीय प्रभाव हो सकता है।
मुख्य प्रतिरक्षी कोशिकाएं(Main Immune cells or WBC)
प्रतिरक्षा तंत्र में दो मुख्य प्रकार की प्रतिरक्षी कोशिकाएं होती हैं जिनका काम रोग पैदा करने वाले हैं एंटी जन को खत्म करना है और उनके बारे में याद भी रखना है ताकि भविष्य में फिर से इंफेक्शन होने पर उन्हें जल्दी की समाप्त किया जा सके।
इनमें बी-लिंफोसाइट्स और टी-लिंफोसाइट्स मुख्य कोशिकाएं हैं
बी-लिंफोसाइट्स एंटीबॉडी मीडियाटेड इम्यूनिटी बनाती है, जबकि टी-लिंफोसाइट्स सेल मीडियाटेड इम्यूनिटी बनाती है।
हमने अपने प्रतिरक्षा तंत्र के बारे में क्या जाना(Conclusion)
इस ब्लॉग से मुझे आशा है कि आपको यह ज़रूर समझ में आया होगा कि, हमारे प्रतिरक्षा तंत्र का कार्य केवल इतना ही नहीं है कि रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया वायरस या सूक्ष्मजीवों को नष्ट करें बल्कि अपनी कोशिकाओं और रोगजनक कोशिकाओं में भी विभेद कर सकें।
कोई भी सवाल या सुझाव हो तो कमेंट बॉक्स में ज़रूर लिखे
अपना क़ीमती समय दे कर ब्लॉग पड़ने के लिए आप का “धन्यवाद”