जीवाणु द्वारा फैलने वाले रोग(Bacterial Diseases in Hindi)-
पृथ्वी पर उपस्थित सूक्ष्मजीवों(Microbes) में सबसे अधिक संख्या में पाए जाने वाले और खोजे गए सूक्ष्मजीवों में जीवाणु या जिन्हें अंग्रेज़ी में बैक्टीरिया(Bacteria) कहते हैं।
जीवाणु दोनों ही प्रकार के होते हैं कुछ ऐसे होते हैं जो हमारे लिए लाभदायक(Useful Bacteria) होते हैं।
जैसे कि लैक्टोबैसिलस बैक्टीरिया(Lactobacillus) दूध से दही जमाने में मदद करता है।
इसी प्रकार से बहुत से ऐसे बैक्टीरिया हैं जो विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों के बनाने में इस्तेमाल होते हैं,बहुत से ऐसे बैक्टीरिया जिनसे हमें एंटीबायोटिक(Antibiotic) दवाई प्राप्त होती हैं।
वहीं कुछ ऐसे बैक्टीरिया होते हैं जो इंसानों में, जानवरों में, और पेड़ पौधों में विभिन्न रोग(Disease causing bacteria)पैदा करते हैं।
आज हम इस लेख में इंसानों में ऐसे रोगों की बात कर रहे हैं जो जीवाणुओं द्वारा पैदा होते हैं।
जीवाणु जनित बीमारियां(Common Bacterial diseases)-
जीवाणु द्वारा इंसानों में जो भी रोग फैलते हैं उनको हम निम्न बिंदुओं के अनुसार समझेंगे।
1.पहला बिंदु– कि कौन सा रोग किस जीवाणु द्वारा(Name of Bacteria which cause disease) होता है
2.दूसरा बिंदु- यह कितने समय में शरीर को प्रभावित करता है।मतलब किसी बैक्टीरिया के शरीर में प्रवेश करने से लेकर रोग के प्रथम लक्षण आने तक का समय
इसे इनक्यूबेशन पीरियड(Incubation Period) के नाम से जाना जाता है
3.तीसरा यह किस प्रकार से मनुष्य में प्रवेश करता है
4.चौथा रोग क्या लक्षण (Symptoms) होते हैं
5.अंत में बचाव और उपचार(Prevention & Treatment) देखेंगे।
आइए अब हम एक-एक करके कुछ मुख्य जीवाणु(Bacteria) जनित बीमारियों को जो कि मनुष्य में पाई जाती हैं देखते हैं।
मियादी बुख़ार(Typhoid Fever)-
यह या रोग सालमोनेला टायफी(Salmonella typhi) बैक्टीरिया के द्वारा फैलता है।
इनक्यूबेशन पीरियड-1 से 3 हफ्ते हो सकता है।
मनुष्य के शरीर में यह बैक्टीरिया गंदे पानी और खाने के(Contaminated Food & Water) द्वारा प्रवेश करता है।
जहां से यह दूसरे अंगों में रक्त संचरण द्वारा पहुंचता है।
टाइफाइड के लक्षण (What are the Symptoms)–
तेज़ बुखार (High Fever) आना जिसमें शरीर का तापमान 39 डिग्री से 40 डिग्री के आसपास रहता है।
कमज़ोरी महसूस होना (Weakness), पेट में दर्द होना (Stomach pain), कब्ज होना (Constipation), सर में दर्द (Headache), भूख ना लगना (Loss of Appetite ), यह सभी इस बीमारी के सामान्य लक्षण हैं।
वही अधिक गंभीर अवस्था में आंतों में छेद (Intestinal Perforation) भी हो जाते हैं और मृत्यु तक हो सकती है।
कैसे बचें(How to prevent)–
इस बैक्टीरिया के इंफेक्शन से बचने के लिए हमें साफ सफाई का ख़ास ध्यान रखना चाहिए।
जो भी हम खाना बना रहे हैं उनमें इस्तेमाल होने वाली चीजों का अच्छे से धुलना चाहिए और खुद की सफाई पर विशेष ध्यान दें।
साथ ही साथ पानी को उबाल कर ठंडा कर पीना चाहिए।
इसके अलावा डॉक्टर के अनुसार एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल करें।
जैसे कि- टेरामाइसिन(Terramycin) और क्लोरोमायसेटिन(Choloromyecetin)
निमोनिया(Pneumonia)-
निमोनिया का कारण स्ट्रैप्टॉकोक्कस निमोनियाई(Streptococcus pneumoniae)या हिमोफिलस इन्फुल्एन्ज़ी(Haemophilus influenzae) बैक्टीरिया है।
निमोनिया फेफड़ों की एक गंभीर बीमारी है क्योंकि इसमें सांस लेने में दिक्कत होती है इसकी वजह जो फेफड़ों की एल्वोलाइ (Lungs Alveoli) होती हैं उनमें पानी भर जाता है।
इनक्यूबेशन पीरियड– 1 से 3 दिन हो सकता है।
या रोग यह बैक्टीरिया संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में हवा के द्वारा फैलता है। और संक्रमित व्यक्ति के इस्तेमाल किए हुए वस्तुओं को अगर कोई छूता है तो उसमें भी संक्रमित होने की संभावना होती है।
निमोनिया के लक्षण–
बुखार आना, ठंडा लगना, कफ होना, सिर दर्द होना। अधिक गंभीर अवस्था में होंठ और उंगलियों के नाखून नीले रंग के पड़ जाते हैं।
उपचार और बचाव(How to Prevent & Treat)-
अधिकतर इसके इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल होता है।
जैसे- पेनिसिलिन, स्ट्रिप्टोमाइसिन, एंपीसिलीन(Penicillin, Streptomycin & Ampicillin)
साथी ही संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने से बचे हैं
अगर वह छींक रहा है तो अपने मुंह पर रुमाल या तौलिया लगा ले जिससे उसके मुंह से निकलने वाला पानी का द्रव्य दूसरे व्यक्ति के संपर्क में ना आए।
कॉलरा(Cholera)-
इसका कारण वाइब्रियो (Vibrio cholerae) बैक्टीरिया है। इसे सबसे पहले रॉबर्ट कोच(Robert Koch)ने ढूंढा था।
जॉन स्नो(John snow) ने सबसे पहले बताया कि कॉलरा गंदे पानी के वजह से फैलता है।
इनक्यूबेशन पीरियड– कुछ घंटों से लेकर 2 से 3 दिन हो सकता है।
लक्षण–
लक्षण की बात करें तो संक्रमित व्यक्ति में सफेद झाग की तरह से दस्त होते हैं साथ ही उल्टी भी आती है।
उपचार और बचाओ–
चूंकि संक्रमित व्यक्ति लगातार दस्त और उल्टी से ग्रसित होता है जिससे उसके शरीर में पानी की तेज़ी से कमी होती है।
इसलिए मरीज़ को तुरंत ओ.आर.एस ओरल रिहाइड्रेशन सलूशन (Oral Rehydration Solution) का घोल बना कर देना चाहिए।
अगर ओ.आर.एस घर पर उपलब्ध नहीं है,तो पानी में चीनी और एक चुटकी नमक मिलाकर ओ.आर.एस का घोल बना सकते हैं।
इस ओ.आर.एस घोल को लगातार मरीज को देते रहें जब तक की दस्ता आने में कमी ना हो जाए।
ताकि शरीर में पानी की कमी और लवणों की कमी ना हो पाए।
दवाओं के तौर पर टेट्रासाइक्लिन (Tetracycline) और कोलोरैमफिनिकाल (Chloramphenicol) एंटीबायोटिक इस्तेमाल की जाती।
ट्यूबरकुलोसिस(Tuberculosis T.B.)-
यह रोग माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium tuberculosis) नामक बैक्टीरिया से होता है।
यह बैक्टीरिया हवा के द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में चलता है।
अगर कोई व्यक्ति इस रोग से ग्रसित है और वह छींक रहा है तो उसके मुंह से निकलने वाले पानी अगर सामान्य व्यक्ति के शरीर में किसी प्रकार से प्रवेश कर जाए तो वह भी इस रोग से ग्रसित हो जाएगा।
इनक्यूबेशन की अवधि– 3 से 6 हफ्ते हो सकती है।
रोग के लक्षण (Symptoms of Pneumoniae)-
ग्रसित व्यक्ति में जो लक्षण दिखाई देंगे वह बुखार का आना, बलगम में खून के छींटे, सीने में दर्द वज़न कम होना, भूख कम लगना, शाम के समय शरीर का तापमान बढ़ जाना, गले में खराश, रात में पसीना होना, नाड़ी की दर ज़्यादा होना इत्यादि।
इस रोग में बैक्टीरिया एक विषैला पदार्थ (Toxin) जिसे ट्यूबरक्युलिन(Tuberculin) कहा जाता है, निकालता है। जोकि फेफड़ों,लिंफ नोड्स,हड्डियों और जोड़ों को प्रभावित करता है।
उपचार और बचाव-
इस रोग के लिए बी.सी.जी(BCG) वैक्सीन दी जाती है साथ ही साथ यह ध्यान रखना चाहिए।
जो भी ग्रसित व्यक्ति है वह छींकते समय अपने मुंह पर तौलिए या रुमाल रखे जिससे दूसरा व्यक्ति इस इंफेक्शन से बचा रहे।
कुछ दवाएं जैसे स्ट्रेप्टोमाइसिन, आइसोनियाज़िद, रीमाफ्सिन(Streptomycin, Rifampicin and Isoniazid) भी इस्तेमाल होती हैं इस रोग के उपचार के लिए।
डिप्थीरिया(Diphtheria)-
यह कार्नीबैक्टीरियम डिप्थीरियाइ(Corynebacterium diphtheria) के द्वारा होता है।
इसमें गले में खराश, सांस लेने में परेशानी होती है यह संक्रमित व्यक्ति की द्रव्य बूंदों द्वारा सामान्य व्यक्ति में फैलता है।
इनक्यूबेशन पीरियड-2 से 5 दिन हो सकता है।
इसके बचाव के लिए डी.पी.टी (DPT) वैक्सीन लगाई जाती है।
परट्युसिस(Pertussis)-
इसका कारण बोर्डेटेला परट्युसिस(Bordetella Pertussis) बैक्टीरिया है।
इस रोग में कफ़ में चेहरा लाल जाता है और हूपिग आवाज़ निकलती है।
संक्रमित व्यक्ति के छींकने कारण जो भी द्रव्य की बूंदें निकलती हैं उससे फैलता है।
इनक्यूबेशन पीरियड- 10 से 16 दिन हो सकता है।
वैक्सीन के तौर पर डी.पी.टी (DPT) इस्तेमाल होगी।
टेटनस(Tetanus)-
इसका कारण बैक्टीरिया क्लॉस्ट्रीडियम टीटेनीं(Clostridium tetani) है।
इसमें चेहरे और जबड़ों की मांसपेशियां अकड़ जाती हैं।
बहुत तेज़ दर्द होता है और आगे चलकर यह जानलेवा हो सकता है।
यह चोट लगने की वजह से होता है अगर चोट ऐसी जगह से लग रही है जहां पर क्लॉस्ट्रीडियम टीटेनीं बैक्टीरिया है।
तो व्यक्ति संक्रमित हो सकता है।
इनक्यूबेशन पीरियड- 3 से 25 दिन हो सकता है।
इसके लिए वैक्सीन डी.पी.टी (DPT) ही इस्तेमाल होती है।
लेप्रोसी(Leprosy)-
इसका कारण माइकोबैक्टेरियम लैप्री (Mycobacterium laprae) है।
इसे हम कुष्ठ रोग के नाम से भी जानते हैं इसमें त्वचा पर हल्के धब्बे पड़ जाते हैं।
यह संक्रमित व्यक्ति के लंबे समय तक संपर्क में आने से फैलता है।
अभी तक इसके लिए कोई भी वैक्सीन नहीं उपलब्ध है।
बयुबोनिक प्लेग(Bubonic plague)-
इसका कारण यरसीनिया पेस्टिस(Yersinia pestis) बैक्टीरिया है।
इस रोग में बहुत तेज़ बुखार आता है।
यह रोग चूहों पर उपस्थित परजीवी रैट फ्लीय(Rat flea)द्वारा फैलता है।
इसके लिए एंटी प्लेग वैक्सीन उपलब्ध है।
बोटूलिज्म-फूडप्वाइज़निंग(Food poisoning)–
यह क्लॉस्ट्रीडियम बोटूलिनम बैक्टीरिया(Clostridium botulinum) द्वारा होता है।
जिसकी वजह से उल्टी आती है और डायरिया हो जाता है।
यह संक्रमित खाने और पानी द्वारा फैलता है ।
इनक्यूबेशन पीरियड-18 से 36 घंटे हो सकता है।
अभी तक इसके लिए कोई वैक्सीन (Vaccine) नहीं उपलब्ध है।
क्या UV-C किरणें बैक्टीरिया और वायरस को हवा में ही खत्म कर सकती हैं।