ओपेरोन-Operon
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ओपेरान की संकल्पना (elucidated) जैकब और मोनाड (F. Jacob & J. Monod) ने दी थी, जब वह ई.कोलाई बैक्टीरिया पर अपना काम कर रहे थे।
ओपेरान क्लस्टर ऑफ़ जीन को कहते हैं, जहां एक जीन का प्रोडक्ट दूसरे जीन के साथ इंटरेक्शन करके, जीन रेगुलेशन में मदद करते हैं।
क्योंकि कोई भी जीन आरएनए या प्रोटीन का फॉर्मेशन करता है, और प्रोटीन आगे चलकर फीनोटिपिक कैरेक्टर को कंट्रोल करता है।
सबसे ज़्यादा स्टडी किया जाने वाला ओपेरान, लैक ओपेरान है।
लैक ओपेरान, लैक्टोज़ शुगर के मेटाबॉलिज्म से रिलेटेड है।
एक ओपेरान में प्रमोटर जीन, रेगुलेटर जीन, ऑपरेटर जीन और स्ट्रक्चरल जीन मौजूद होते हैं।
रेगुलेटर जीन का प्रोडक्ट, ऑपरेटर जीन को ऑफ या ऑन (Off or On) करता है, जिससे स्ट्रक्चरल जीन से एम-आरएनए (m-RNA) का बनना डिपेंड करता है।
और अगर एम-आरएनए बनता है, तो वो आगे चलकर ट्रांसलेशन (translation) करता है। जिससे प्रोटीन का फॉर्मेशन होता है, यही प्रोटीन या एंजाइम,फिर फीनोटिपिक एक्सप्रेशन (regulate phenotypic expression) को रेगुलेट करते हैं।
लैक ओपेरान में लैक्टोज़ शुगर (lactose- a disaccharide) का मेटाबॉलिज्म होता है।
जब ई.कोलाई बैक्टीरिया (E.coli needs energy) को ऊर्जा की आवश्यकता होती है, तब यह लैक्टोज़ शुगर को ग्लूकोज़ और गैलेक्टोज़ (glucose & galactose- a monosaccharide) में बीटा गैलेक्टोसाइडेज़ एंजाइम (beta-Galactosidase) की प्रेजेंस में ब्रेक कर देता है।
इस प्रकार से ग्लूकोज़ और गैलेक्टोज ई.कोलाई बैक्टीरिया के लिए एनर्जी सोर्स का कम करते हैं।
लेकिन अगर ई.कोलाई सेल में या उसके सराउंडिंग वातावरण (surrounding environment) में लैक्टोज़ शुगर नहीं होता है, तो बीटा गैलेक्टोसाइडेज़ एंजाइम का फॉर्मेशन नहीं होता है।
अभी तक डिफरेंट टाइप्स के ओपेरान डिस्कवर किए जा चुके हैं, जैसे की वैल-आपेरान, ट्रिप-ओपेरान, हिस–ओपेरान और लैक–ओपेरान (val-operon, his-operon, trp-operon & lac-operon etc) आदि।
आज के पोस्ट में हम लोग लैक ओपेरान के बारे में डिटेल में सीखेंगे, की यह किस तरह से काम करता है।
लैक ओपेरान
इसकी खोज और नाम जैकब और मोनाड ने ई.कोलाई बैक्टीरिया में की थी, यहां पर लैक का मतलब लैक्टोज़ शुगर से है।
इस ओपेरान में लैक्टोज़ शुगर खुद इंड्यूसर का काम करती है।
अगर लैक्टोज़ शुगर ई.कोलाई बैक्टीरिया में मौजूद है, या उसके बाहरी एनवायरनमेंट में मौजूद है।
तो बीटा गैलेक्टोसाइडेज़ एंज़ाइम का फॉर्मेशन होगा, जो लैक्टोज़ को ग्लूकोज़ और गैलेक्टोज में ब्रेक कर देगा।
फिर ई.कोलाई बैक्टीरिया इस ग्लूकोज़ ओर गैलेक्टोज को एनर्जी सोर्स के तौर पर इस्तेमाल करेगी।
लेकिन अगर ई.कोलाई बैक्टीरिया में लैक्टोज़ शुगर या उसके सराउंडिंग एनवायरनमेंट में लैक्टोज़ शुगर मौजूद नहीं है, तो बीटा गैलेक्टोसाइडेज़ एंज़ाइम का फॉर्मेशन नहीं होगा।
स्ट्रक्चरल जीन-Structural gene
लैक ओपेरान में स्ट्रक्चरल जीन को तीन पार्ट में डिफरेंशिएट करते हैं, इनके नाम निम्नलिखित हैं।
- लैक–ज़ेड जीन-Lac-z gene
लैक–ज़ेड जीन बीटा गैलेक्टोसाइडेज़ एंज़ाइम को कोड करता है, जो की लैक्टोज़ शुगर को ब्रेक करता है, ग्लूकोज़ और गैलेक्टोज में।
- लैक-वाई जीन-Lac-y gene
लैक-वाई जीन परमीऐज़ एंज़ाइम (permease) को कोड करता है जो ई.कोलाई में लैक्टोज़ के मूवमेंट को रेगुलेट करता है
- लैक-ए जीन-Lac-a gene
लैक-ए जीन ट्रांस-एसीटाइलेज़ एंज़ाइम (transacetylase) को कोड करता है, जोकि मेटाबॉलिक प्रक्रिया (during metabolic processes) के दौरान बनने वाले टॉक्सिक केमिकल के कंसंट्रेशन (regulate concentration of toxic chemicals) को सेल में रेगुलेट करता है।
लैक ओपेरान मेकैनिज्म-Mechanism of Operon
लैक ओपेरान को हम आसानी से समझने के लिए दो पार्ट में डिवाइड कर लेते हैं।
जब सेल में लैक्टोज़ शुगर एब्सेंट हो स्विच ऑफ कंडीशन और जब सेल में लैक्टोज़ शुगर प्रेजेंट हो स्विच आन कंडीशन।
A-स्विच ऑफ कंडीशन-Switch Off condition
जब सेल में लैक्टोज़ शुगर एब्सेंट हो-
सबसे पहले रेगुलेटर जीन (regulator gene) के ट्रांसक्रिप्शन से रिप्रेसर एम-आरएनए बनता है, जिसके ट्रांसलेशन के बाद रिप्रेसर प्रोटीन (repressor protein) का फॉर्मेशन होता है।
अब अगर सेल में लैक्टोज़ शुगर एब्सेंट है, तो रिप्रेसर प्रोटीन लैक्टोज़ के ना होने पर ऑपरेटर जीन पर जाकर अटैच हो जाता है।
जिससे ऑपरेटर जीन ईनएक्टिव हो जाता है, और वहां पर स्विच ऑफ कंडीशन हो जाती है।
इससे स्ट्रक्चरल जीन पर ना ट्रांसक्रिप्शन होता है, और ना ही ट्रांसलेशन होता है।
जिसकी वजह से किसी भी तरह के एंजाइम या प्रोटीन की सिंथेसिस स्ट्रक्चरल जीन से नहीं होती है।
इस प्रकार अगर लैक्टोज़ शुगर सेल में नहीं है तो एंजाइम का फॉर्मेशन स्ट्रक्चरल जीन से नहीं होगा।
B-स्विच ऑन कंडीशन-Switch On condition
जब सेल में लैक्टोज़ शुगर प्रेजेंट हो स्विच ऑन कंडीशन-
पूरी प्रक्रिया पहले की तरह ही से ही शुरू होती है लेकिन इस बार सेल में लैक्टोज़ शुगर प्रेजेंट है तो यह रिप्रेसर प्रोटीन के साथ जुड़ जाता है, और रिप्रेसर इंड्यूसर काम्प्लेक्स का फॉर्मेशन होता है।
यह रिप्रेसर इंड्यूसर काम्प्लेक्स ऑपरेटर जीन पर अटैच नहीं कर पता।
जिससे ऑपरेटर जीन एक्टिवेट हो जाता है, और वहां पर स्विच ऑन कंडीशन हो जाती है।
जिससे स्ट्रक्चरल जीन से एंजाइम या प्रोटीन की कोडिंग शुरू हो जाती है, मतलब कहने का ट्रांसक्रिप्शन होने पर स्ट्रक्चरल जीन से एम–आरएनए बनता है।
इस एम–आरएनए को लैक एम-आरएनए कहा जाता है। लैक एम-आरएनए (m-RNA) का ट्रांसलेशन होने पर बीटा गैलेक्टोसाइडेज़, परमीऐज़ और ट्रांस-एसीटाइलेज़ एंज़ाइम का फॉर्मेशन होता है।
बीटा गैलेक्टोसाइडेज़ एंज़ाइम लैक्टोज़ शुगर को ब्रेक करेगा, जिससे ग्लूकोज़ और गैलेक्टोज़ बनेंगे।
और ई.कोलाई बैक्टीरिया सेल अपनी एनर्जी की ज़रूरत को इससे पूरा करेगी।
इस पोस्ट में हमने सीखा की किस तरह से ई.कोलाई बैक्टीरिया में जीन रेगुलेशन की क्रियाविधि होती है, और बीटा गैलेक्टोसाइडेज़ एंजा़इम की सिंथेसिस को स्ट्रक्चरल जीन से कोड होने को रेगुलेट किया जाता है।
कुल मिलाकर अगर ई.कोलाई सेल में लैक्टोज़ शुगर है, तो बीटा गैलेक्टोसाइडेज़ एंजा़इम बनेगा और अगर सेल में लैक्टोज़ शुगर नहीं है, तो बीटा गैलेक्टोसाइडेज़ एंजा़इम फॉर्मेशन भी नहीं होगा।
कुछ सवाल-Important Questions
रेगुलेटर जीन (Regulator gene) क्या होता है?
लैक ओपेरान में रेगुलेटर जीन, इन्हिबिटर या रिप्रेसर प्रोटीन का फॉर्मेशन करता है।
यह ओपेरान के कम करने को रोक देता है इस प्रकार से यह नेगेटिव कंट्रोल करता है स्ट्रक्चरल जीन का।
स्ट्रक्चरल जीन लैकओपेरान का मुख्य जीन होता है, जिससे की अलग-अलग एंजाइम का फॉर्मेशन होता है।
एन्डुसिबल ओपेरान क्या होता है? What is inducible operon?
एन्डुसिबल ओपेरान का सबसे अच्छा एग्जांपल लैक ओपेरान है, जहां पर लैक्टोज़ शुगर इंड्यूसर का कम करती है।
लैक ओपेरान की खोज किसने की? Who discovered lac operon?
लैक ओपेरान की खोज जैकब और मोनाड ने 1961 में की
सबसे पहले खोजा जाने वाला ओपेरान कौन सा है?
लैकओपेरान सबसे पहले खोजा जाने वाला ओपेरान है
लैक ओपेरान कैटाबॉलिक या एनाबोलिक ओपेरान है?
लैक ओपेरान कैटाबॉलिक ओपेरान (catabolic operon) है
ऑपरेटर जीन क्या है?What is Operator gene?
इस जीन को स्विच ऑफ और स्विच ऑन जीन भी कहते हैं, यह स्ट्रक्चरल जीन से एम-आरएनए की सिंथेसिस को कंट्रोल करता है, यह जीन रिप्रेसर प्रोटीन की प्रेजेंस में ऑफ हो जाता है, और इंड्यूसर के प्रेजेंस में ऑन हो जाता है।
प्रमोटर जी यह वह जीन है जहां पर आरएनए polymerase एंजाइम जुड़ता है, और ट्रांसक्रिप्शन की प्रक्रिया को शुरू करता है जिससे हमारे ने बनता है।
रिप्रेसर क्या होता है?What is repressor?
यह प्रोटीन है जो की रेगुलेटर जीन से बनता है, इंड्यूसर की अब्सेंस में यह प्रोटीन के फॉर्मेशन को रोकता है।
अंत में-Conclusion
किसी भी प्रकार का कोई सुझाव या अपडेट और यदि कोई मिस्टेक आपको दिखाई देती है तो आप हमें ज़रूर बताएं।
हम आपके सुझाव को या किसी मिस्टेक, जोकि पोस्ट में यदि कहीं पर हुई है, तो उसे अपडेट करने की पूरी कोशिश करेंगे।
अपना बहुमूल्य समय देने के लिए आपका बहुत धन्यवाद।
आप की ऑनलाइन यात्रा मंगलमय हो।।