क्या बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया(Bacteria) और वायरस(Virus) को हवा में ही खत्म किया जा सकता है?
हम जानते हैं की कोरोना वायरस(Covid-19) और ट्यूबरक्लोसिस(Tuberculosis-T.B) या छय रोग जैसी बीमारियां हवा में मौजूद वायरस और बैक्टीरिया द्वारा बहुत तेज़ी से फैलती हैं।
इस सदी में कोरोना ने जिस प्रकार का कहर बरपाया है उससे हर व्यक्ति और देश बहुत बुरी तरह प्रभावित हुआ है साथ ही बहुत से देशों की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई है।
लाखों लोगों को अपना रोज़गार गवाना पड़ा और लाखों की मृत्यु हुई है।
इस तरह की चुनौतियों का और बीमारियों का सामना करने के लिए वैज्ञानिक अब ऐसी तकनीक विकसित करने में लगे हुए हैं जो बैक्टीरिया या वायरस को हवा में ही खत्म कर दे।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी मद्रास (IIT-Madras) और साथ ही ब्रिटेन(Britain) की क्वीन मेरी यूनिवर्सिटी(Queen Marry University)
साथ ही साथ वेल्लोर प्रौद्योगिकी संस्थान(Vellore Institute of Technology) के साथ मिलकर ऐसी तकनीक को बनाया जा रहा है।
ताकि वायरस या बैक्टीरिया को हवा में ही ख़त्म कर दिया जाए आईआईटी मद्रास को इस प्रोजेक्ट के लिए भारत सरकार का विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय मदद कर रहा है।
इस प्रोजेक्ट में यह शोध किया जा रहा है कि क्या कोई ऐसी तकनीक बनाई जा सकती है जो बायोएरोसॉल प्रोटक्शन सिस्टम का काम करें।
और बंद जगहों पर वायरस और बैक्टीरिया को नष्ट कर दे जैसे कि ऑफिसों में,अस्पतालों में या बंद कमरों में।
इस शोध में या देखा गया है की अल्ट्रावायलेट सी रेडिएशन के इस्तेमाल से हवा को साफ करने में बहुत हद तक मदद मिलती है।
जैसा कि यह स्पष्ट है यूवीसी किरणें डीएनए को नुकसान पहुंचाती हैं अतः इसका उपयोग सूक्ष्म जीवों के को नष्ट करने में और स्टरलाइजेशन में किया जाता है।
लेकिन अभी इसे अंतिम नहीं माना जा रहा है मगर अब तक के शोध से यह साफ हो गया है कि यूवी सी रेडिएशन(UV-C Radiations) हवा में फैलने वाले वायरस और बैक्टीरिया को आसानी से ख़त्म कर सकती है।
यह तकनीक उन देशों के लिए बहुत लाभकारी होगी जो अभी विकासशील हैं।
जैसे कि भारत में हवा को साफ़ करने के लिए जो भी तकनीक अभी उपलब्ध है उस पर उपभोक्ताओं का बहुत भरोसा नहीं है और वह बहुत ज्यादा महंगी भी है।
साथ ही इस प्रकार की तकनीकों का रखरखाव भी ख़र्चीला है अतः उपभोक्ता इस पर बहुत ज़्यादा भरोसा नहीं कर पा रहे हैं और हर किसी के पास यह उपलब्ध भी नहीं है।
अतः जिस तकनीक पर काम हो रहा है वह बहुत सस्ती है साथ ही साथ उसका रखरखाव भी बहुत कम होगा
प्रोजेक्ट से जुड़े आईआईटी मद्रास के प्रोफेसर अब्दुल समद कहते हैं कि, कोरोना काल(Corona Pandemic) के दौरान इस दिशा में काम शुरू किया गया कि कैसे हवा में ही मौजूद बैक्टीरिया और वायरस से बचा जा सकता है।
हर साल टीवी से भारत में लाखों मौत होती है
पूरे भारत में ट्यूबरकुलोसिस(Tuberculosis) बीमारी से लाखों लोग दम तोड़ देते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष साल 2019 में ही देश में 4.45 लाख लोगों को टीबी की बीमारी से जान गवानी पड़ी है।
क्योंकि उसके जीवाणुओं(Bacteria) हवा द्वारा ही आसानी से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में है पहुंचते हैं।
इसी प्रकार कोरोना बीमारी से देश में अब तक चार लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
हम यह भी जान सुन रहे हैं की तीसरी लहर आने का संकट लगातार बना हुआ है अब यह कितनी घातक होगी यह तो समय बताएगा लेकिन जान का ख़तरा तो बना ही रहेगा।
इसलिए इस तरह की तकनीक बहुत ज्यादा उपयोगी होगी जो ऐसे वायरस को या जीवाणुओं को हवा में ही नष्ट कर दे साथ ही साथ सस्ती और उसका भी रखरखाव कम खर्चीला हो।
एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया था की अल्ट्रावायलेट किरणें कोरोना वायरस की बाहरी सतह को भी नष्ट करती हैं साथ ही साथ ही फ्लू वायरस को मारने में मदद कर सकती हैं।
क्या होती है अल्ट्रावायलेट किरणें-
सूरज की रोशनी में तीन प्रकार की अल्ट्रावायलेट किरणें उपस्थित होती हैं। इनमें से अधिकतर पृथ्वी के बाहरी वातावरण शोषित हो जाती हैं।
अल्ट्रावायलेट किरणें तीन प्रकार की होती हैं जिन्हें-
युवी-ए(Ultraviolet-A radiation)
युवी-बी(Ultraviolet-B radiation)
युवी-सी(Ultraviolet-C radiation) नाम दिया गया है जो कि इनके वेवलेंथ(Wavelength) के आधार पर है।
क्यों हानिकारक हैं युवी-सी(UV-C) किरणें-
युवी-सी(UV-C) सबसे छोटी वेवलेंथ की अल्ट्रावायलेट किरणें हैं जो डीएनए(DNA-deoxyribonucleic acid) को बहुत ज़्यादा नुकसान पहुंचाती हैं।
इसका इस्तेमाल जीवाणुओं और वायरस को खत्म करने के लिए बहुत पहले से हो रहा है।
युवी-बी(UV-B) दूसरी छोटी अल्ट्रावायलेट वेवलेंथ किरणें हैं।
वही युवी-ए(UV-A) सबसे अधिक वेवलेंथ की अल्ट्रावायलेट किरणें हैं।
क्योंकि युवी-सी किरणें अधिकतर पृथ्वी के बाहरी वातावरण में ही अवशोषित हो जाती हैं और पृथ्वी पर यह सीधे तौर पर नहीं आती अतः मनुष्य और अन्य जीवो पर इनका कोई असर नहीं होता।
वही वैज्ञानिकों ने युवी-सी किरणों को से कृत्रिम तरीक़े से बनाया है जोकि विभिन्न उपकरणों से निकलती हैं और को अधिकतर सूक्ष्मजीवों को नष्ट करने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता है।
कृत्रिम युवी-सी किरणें-
चूंकि अधिकतर यूवी किरणें पृथ्वी के बाहरी वातावरण में ही और शोषित हो जाती हैं इसलिए इन किरणों का जो भी उपयोग होता है वह मानव निर्मित उपकरणों द्वारा किया जाता है।
जैसे कि कुछ उपकरण जिनसे युवी-सी किरणें निकलती हैं और उनका अलग-अलग जगहों पर इस्तेमाल होता है।
उपकरण जिनसे यूवीसी किरणें निकलती जाती है-
1-मर्करी लैपों द्वारा
2-लेज़र द्वारा(Laser)
3-पुरानी टैनिंग बेड द्वारा
4-वेल्डिंग में इस्तेमाल होने वाली टॉर्चों द्वारा