डीएनए(DNA)रिप्लिकेशन
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डीएनए रिप्लिकेशन वह प्रोसेस है जिसमें एक डीएनए से दूसरे डीएनए की आईडेंटिकल या कार्बन कॉपी बनती है। डीएनए रिप्लिकेशन का मोड सेमीकंजरवेटिव होता है।
इसकी परिकल्पना सबसे पहले वाटसन और क्रिक ने दी थी, ये वही वैज्ञानिक थे, जिन्होंने डीएनए का डबल हेलीकल मॉडल 1953 में प्रस्तुत किया था। लेकिन डीएनए रिप्लिकेशन सेमीकंजरवेटिव होता है इसको प्रूफ किया था, मेसलज़्न और सहाल (1958) नामक वैज्ञानिक हैं।
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आज के इस पोस्ट में हम लोग डीएनए रिप्लिकेशन के बारे में डिटेल में समझेंगे।
जब किसी भी ऑर्गेनिज़्म या जीव में सेल डिविजन होता है, तो उसके पहले ही डीएनए रिप्लिकेशन हो चुका होता है।
क्योंकि जो भी नई डॉटर सेल डिविज़न के बाद बनती हैं, उनमें सही अमाउंट में डीएनए का डिस्ट्रीब्यूशन होना ज़रूरी होता है।
यूकैरियोटिक सेल में डीएनए रिप्लिकेशन, सेल साइकिल की एस-फेस वाली प्रोसेस में होता है।
जबकि प्रोकैरियोटिक सेल में डीएनए रिप्लिकेशन की प्रोसेस, सेल डिविज़न के ठीक पहले होती है।
डीएनए रिप्लिकेशन यूकैरियोटिक में न्यूक्लियस में होता है, जबकि प्रोकरयोट्स में है यह साइटोंप्लाज़्म में होता है।
क्योंकि हम जानते हैं कि, प्रोकरयोट्स में न्यूक्लियस मौजूद नहीं होता है।
डीएनए रिप्लिकेशन की प्रक्रिया में दोनों स्ट्रैंड एक दूसरे से अलग हो जाते हैं, और हर स्ट्रैंड टेंपलेट्स स्ट्रैंड की तरह कार्य करने लगते हैं, और इन्हीं टेंपलेट्स स्ट्रैंड, पर नए डीएनए स्ट्रैंड का फॉर्मेशन होता है।
मतलब कहने का जो भी डॉटर डीएनए मॉलिक्यूल बनते हैं, उनमें एक तो ओल्ड स्ट्रैंड होता है, और दूसरा नया स्ट्रैंड होता है।
इसीलिए डीएनए रिप्लिकेशन के मोड को सेमीकंज़रवेटिव मोड ऑफ डीएनए रिप्लिकेशन कहा जाता है।
डीएनए रिप्लिकेटिंग एंजाइम्स
डीएनए रिप्लिकेशन में 20 से अधिक प्रकार के एंज़ाइम्स और प्रोटीन इस्तेमाल होते हैं। इसके अलावा एटीपी, मैग्नीशियम आयन और डीऑक्सी न्यूक्लियोसाइड ट्राईफास्फेट का इस्तेमाल होता है।
कुछ मुख्य एंजाइम जो कि डीएनए रिप्लिकेशन में इस्तेमाल होते हैं, उनके नाम और काम इस प्रकार है।
हेलीकेज़ एंजाइम
हाइड्रोजन बांड को ब्रेक करता है, जिससे दो कंप्लीमेंट्री बेस पेयर के बीच के हाइड्रोजन बांड टूट जाते हैं और वह स्ट्रैंड अलग हो जाता है।
यहां यह ध्यान देना ज़रूरी है, कि डीएनए रिप्लिकेशन के दौरान पूरे स्ट्रैंड को एक साथ सेपरेट नहीं किया जाता है।
बल्कि छोटे-छोटे सेगमेंट में पूरे स्ट्रैंड को ओपन किया जाता है, और इसी प्रक्रिया को रिपीट करते हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि दोनों स्ट्रैंड को पूरी तरह से अलग-अलग करने के लिए एक तो बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होगी।
क्योंकि हर हाइड्रोजन बांड को तोड़ने के लिए एक एटीपी खर्च होते हैं, तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं की कुल मिलाकर कितने एटीपी खर्च होंगे। अगर ह्यूमन डीएनए की कुल लंबाई 6.6×10×9 तो कुल मिलाकर कितने एटीपी खर्च हो सकते हैं।
वहीं दूसरी तरफ दोनों स्ट्रैंड को एक साथ पूरी तरह से सेपरेट कर दिया जाए तो, दोनों स्ट्रैंड एक दूसरे से अलग होकर न्यूक्लियस में इधर-उधर बिखर जाएंगे।
इसका नतीजा यह होगा कि, फिर रिप्लिकेशन सही तरह से नहीं हो सकेगा।
सिंगल स्ट्रैंडेड बाइंडिंग प्रोटीन
यह प्रोटीन दोनों सेपरेटेड स्ट्रैंड को क्लैम्प की तरह से पकड़ लेती है, जिससे वह फिर से आपस में जोड़ नहीं पाते। क्योंकि डीएनए में रिनेचुरेशन पावर बहुत ज़्यादा होता है।
अगर सेपरेटेड स्ट्रैंड फिर से आपस में जुड़ जाएंगे तो फिर से हेलीकेज़ एंजाइम को हाइड्रोजन बॉन्ड ब्रेक करना होगा और कोशिका को फिर से एटीपी खर्च करने होंगे।
जिससे समय और ऊर्जा दोनों की बर्बादी होगी और सही समय पर डीएनए रिप्लिकेशन कंप्लीट नहीं हो पाएगा।
डीएनए पॉलीमरेस एंजा़इम
यह डीएनए के पॉलीमराइजेशन में मदद करता है इसके अलावा यह मुख्य एंजा़इम है डीएनए की सिंथेसिस के लिए।
डीएनए पॉलीमरेस, डीएनए का पॉलीमराइजेशन 5’—3’ डायरेक्शन में करता है।
आर एन ए प्राइमेज़ एंजाइम
यह डीएनए डिपेंडेंट आरएनए पॉलीमरेस एंजाइम होता है जोकि आर एन ए की सिंथेसिस में मदद करता है, डीएनए की सिंथेसिस से पहले एक छोटा सा आर एन ए, सेपरेटेड डीएनए टेम्पलेट सेगमेंट के 3’ प्राइम एंड पर बनता है।
इस स्मॉल आरएनए मॉलिक्यूल को, आर एन ए प्राइमर कहते हैं। इसे बनाने वाले एंजाइम को आर एन ए ने प्राइमेज़ कहते हैं।
डीएनए लाइगेज़ एंजाइम
यह एंजाइम ओकाज़ाकी या डीएनए सेगमेंट को जोड़ने का काम करता है इसलिए इसे जॉइनिंग या सीलिंग एंजाइम भी कहते हैं।
डीएनए रिप्लिकेशन के मेन स्टेप्स
डीएनए रिप्लिकेशन के मेन स्टेप्स इस प्रकार हैं।
अनवाइंडिंग ऑफ डीएनए स्ट्रैंड
सबसे पहले होली गीत एंजा़इम हाइड्रोजन बांड को ब्रेक करते हैं जिससे दोनों स्ट्रैंड के कंप्लीमेंट्री बेस पेयर एक दूसरे से अलग हो जाते हैं और स्ट्रैंड सेपरेट हो जाता है।
डीएनए रिप्लिकेशन एक विशेष पॉइंट से शुरू होता है जिसे ओरिजिन ऑफ एप्लीकेशन कहा जाता है।
दोनों सेपरेटेड स्ट्रैंड फिर से आपस में जुड़ना चाहते हैं, जिनको सिंगल स्ट्रैंडेड बाइंडिंग प्रोटीन या डीएनए बाइंडिंग प्रोटीन रोक देती है।
प्राइमर सिंथेसिस
आर एन ए प्राइमेज़ एंजाइम टेंपलेट स्ट्रैंड की थ्री प्राइम एंड पर स्मॉल आर एन ए मॉलिक्यूल की सिंथेसिस करता है। जिसे आर एन ए प्राइमर कहते हैं यह प्राइमर फ्री 3’ प्राइम OH ग्रुप प्रोवाइड करता है।
ताकि डीएनए की सिंथेसिस, डीएनए पॉलीमरेस एंजाइम द्वारा शुरू की जा सके, क्योंकि डीएनए पॉलीमरेस अकेले ही डीएनए की सिंथेसिस को शुरू नहीं कर सकता।
डीएनए सिंथेसिस या चैन एलॉन्गेशन
प्राइमर बनने के बाद डीएनए पॉलीमरेस 5 प्राइम से 3 प्राइम डायरेक्शन में डीएनए के सिंथेसिस शुरू कर देता है।
डीएनए के एक स्ट्रैंड पर तो कंटीन्यूअस डीएनए सिंथेसिस होती है। जबकि दूसरे स्ट्रैंड पर डीएनए की सिंथेसिस सेगमेंट में होती है।
इन सेगमेंट को ओकाज़ाकी सेगमेंट कहते हैं, जिनको सबसे पहले ओकाज़ाकी ने देखा था।
प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में ओकाज़ाकी सेगमेंट की लंबाई 100 से 200 बेसेस होती है, जबकि यूकैरियोटिक कोशिका में इसकी लंबाई 1000 से 2000 न्यूक्लियोटाइड लेंथ की होती है।
डीएनए की एक स्ट्रैंड पर कंटीन्यूअस सिंथेसिस होती है, इस स्ट्रैंड को लीडिंग स्ट्रैंड कहते हैं, जबकि जिस स्ट्रैंड पर डीएनए सेगमेंट के रूप में बनता है, उस स्ट्रैंड को लैगिंग स्ट्रैंड कहते हैं।
प्राइमर रिमूवल
डीएनए की सिंथेसिस होने के बाद डीएनए पॉलीमरेस एंजाइम प्राइमर को हटा देता है, और खाली जगह पर नए न्यूक्लियोटाइड्स को ऐड करता है।
जॉइनिंग ऑफ ओकाजकी सेगमेंट
डीएनए लाइगेज़ एंजाइम दो ओकाज़ाकी सेगमेंट को आपस में जोड़ देता है, यह प्रक्रिया फास्फो डाई एस्टर बांड के फॉर्मेशन होने के बाद होती है।
रेट ऑफ़ डीएनए रिप्लिकेशन
डीएनए रिप्लिकेशन रेट आइडियल कंडीशन में 2000 बेस पेयर/सेकंड होता है।
मतलब हर सेकंड में डीएनए पालीमिरेज़ एंजा़इम 2000 बेसेस ऐड होते हैं।
अंत में
इस प्रकार हमने देखा कि डीएनए रिप्लिकेशन प्रोकैरियोटिक और यूकैरियोटिक सेल में किस प्रकार से होता है, और उसके कौन-कौन से मुख्य एंजाइम हैं।
हालांकि डीएनए रिप्लिकेशन को यहां पर बहुत ही शॉर्ट में समझाया गया है, उम्मीद है आपको पसंद आया होगा।
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